May 14, 2015

Achlaram Meghwal - श्री अचलाराम मेघवाल


आज मेरे पिताजी पूर्व राज्यमंत्री अचलारामजी मेघवाल का जन्म दिवस है। वे अपनी उम्र के 66 बसंत देख चुके और गणना करे तो आज उन्हें अपने जीवन 24 हजार 106 दिन पूरे हुए हैं। इस दरम्यान पता नहीं उन्होंने कितने संघर्ष देखे और झंझावतों से पार पाया है। सत्ता सुख के बावजूद दिखावा उनसे कोसों दूर रहा। उनकी सादगी और ईमानदारी के आज भी हजारों लोग कायल हैं।

उन्होंने सात विधानसभा चुनाव लड़े और तीन बार विधायक चुने गए। एक बार आयुर्वेद राज्यमंत्री भी रहे। भाजपा जिलाध्यक्ष, भाजयुमो प्रदेश उपाध्यक्ष व भाजपा के प्रदेश मंत्री जैसे संगठन के कई पदों पर भी रहे। वे पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के करीबी लोगों में से एक थे।

लेकिन बाद के दिनों में उन्हें भाजपा ने किनारे कर दिया। अब सुखद बात यह है कि राजनीति की मुख्यधारा में धीरे-धीरे उनकी भागीदारी बढ़ती जा रही है। कहा जा सकता है कि उनके लिए 67 वां वर्ष शुभ होगा। पिछले दिनों पाली जिले से भारतीय जनता पार्टी का जिलाध्यक्ष बनाने के लिए नाम पैनल में चला। लेकिन वे इस पार्टी के संस्थापक जिला महामंत्री और बाद में दूसरे जिलाध्यक्ष बनने का गौरव हासिल चुके हैं। इसलिए अब इनकी वरिष्ठता और अनुभवों के आधार पर कोई नई जिम्मेदारी तय की जा सकती है।

इस समय वे भारतीय जनता पार्टी के गौवंश विकास प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। पिछले दिनों वे नई दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेकर लौटे हैं। लेकिन जो लोग इन्टरनेट के जमाने में वर्तमान नेताओं के बारे में ही जानते और समझते हैं उन्हें श्री कैलाश मेघवाल के समकक्ष सन् 1977 में राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण करने वाले अचलाराम जी मेघवाल के बारे में संभवतः ज्यादा जानकारी न हो।

इनके पिताजी वेलारामजी ने अश्लेषा नक्षत्र में इनके जन्म की वजह से नाम रख दिया अचलाराम। बाल्यावस्था में ही माँ गुजर गई, तो सारा भार पिता जी पर आ गया। तीन भाईयों में इस मझले बेटे को पिताजी बहुत स्नेह करते थे। लिहाजा चमड़े के व्यापारी पिताजी के साथ रहने और उनके क्रय-विक्रय हिसाब भी वे ही रखते थे।

नारलाई में जन्मे मेघवाल की पढ़ाई-लिखाई अपने गांव में ही हुई। प्राइमरी कक्षा करते-करते वे अपने पिताजी के साथ रहने लगे। अक्सर मेवाड़ के चारभुजा, जनावद, धानीन और आसपास के गांवों में पैदल चलकर पहुँचना और रात रहना पड़ता था। इस चक्कर में पढ़ाई छूटती गई। आज भी इनके पिता जी इन गांवों में ‘वेलादादा‘ के नाम से पहचाने जाते हैं। लेकिन एक दिन उनके पांव में कांटा चुभ गया तो पिताजी को काफी दर्द हुआ और अपने बेटे को वापस स्कूल में दाखिला दिला दिया। आठवीं कक्षा पास करने के बाद वे सादड़ी चले गए। वहाँ समाज कल्याण विभाग के अनुदानित छात्रावास में रहकर देवीचंद मायाचंद बोरलाईवाला उच्च माध्यमिक विद्यालय से सैकेण्डरी और हायर सैकेण्ड़री पास की। पढ़ाई के बाद उनका चयन अध्यापक प्रशिक्षण के लिए हो गया।

उन्हें प्रशिक्षण केन्द्र शिवगंज आबंटित किया गया। वे शिवगंज तो गए लेकिन भारी बरसात हो गई। तब आवागमन के साधन भी आज के मुताबिक नहीं थे। तब वे कुछ दिन बाद ही घर लौटे और पैसों की कमी की वजह से चने खाकर गुजारा करना पड़ा।





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